मांगीतुंगी यह एक ऐतिहासिक और धार्मिक सिद्धक्षत्र है | यहाँ की मिटटीका कणकण ९९ कोटि मुनियों के कठोर तपश्चर्या तथा उनके मोक्ष प्राप्ति से पवन है | मंगीतुंगी यह पहाड़ और उसपर स्तिथ सारी जैन गुफाएं दिगंबर जैन समाजकी अनमोल धरोहर है |
मांगीतुंगी पहाड़ पर श्री दिगंबर जैन सिद्धक्षत्र देवस्थान ट्रस्ट राजी. न. अ - ३६४ की मालकी तथा आवाजाही है | यह क्षेत्र उत्तर भारत के सम्मेद शिखरजी के बाद दिगंबर जैन परंपरा के अनुसार दक्षिण भारत का सम्मेद शिखरजी मना जाता है |
भट्टारकजी के समय से यहाँ के मंदिरों की पूजा अर्चना तथा यहाँ आनेवाले सभी यात्रियों की व्यवस्था का काम जिन परिवारों द्वारा किया गया उन्ही परिवारों द्वारा इस दिगंबर जैन देवस्थान ट्रस्ट का गठन किया गया है | एवं मांगीतुंगी का मंदिरों की पूजा अर्चना तथा यहाँ आनेवाले सभी यात्रियों की व्यवस्था का काम इसी ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है |
आजसे ३०-४० साल पहले मांगीतुंगी में आने जाने के लिए कोई पक्की सड़क तक नहीं थी | यहाँ तक आने के लिए बैलगाड़ी के अलावा कोई भी दूसरा साधन नहीं था | ऐसी कठिन समय में मांगीतुंगी के इस ट्रस्ट मंडल ने अपनी सूझबुझ से तथा अपने दूर दृष्टी का परिचय देते हुए यहाँ आने के लिए अपक्की सड़क सटाना तक बनवाई | यहाँ टेलीफोन व्यवस्था कायम करने के लिए तहेराबाद में खास नया टेलीफोन एक्सचेंज शुरू करवाया |
मांगीतुंगी से सताना, मलेगाॉव, नामपुर, मनमाड, नासिक, औरंगाबाद और धूलिया इन सब शहरों से बस सेवा से जोड़ा गया | इस व्यवस्था को मूर्त स्वरुप लाने में तत्कालीन ट्रस्टी डॉ. देवेन्द्र धर्मदास लाड, श्री हुकुमचन्दजी गंगवाल, श्री माणिकचंद पहाड़े, तथा मैनेजर श्री सूरजमलजी जैन इनका विशेष योगदान रहा है | आजसे ३०-४० साल पहले मांगीतुंगी में पीने का पानी लोग सटाणा, तहेराबाद तथा मालेगांव से ले कर जाते थे | ऐसे कठीण समय में तत्कालीन ट्रस्ट मंडलने यहाँ यात्रियों की सेवा की है
१९९० में इस सिध्दक्षेत्र प् महासभा का आयोजन किया गया था | उस वक़्त मांगीतुंगी के पहाड़ पर १२० फ़ीट ऊँची प्रतिमा बनानेकी संकल्पना प. पु. आचार्य १०८ श्री श्रेयांसागरजी महाराजजी ने की थी | जिसका भूमिपूजन महासभा की अनुमति से संपन्न हुवा था | जिसमे श्री निर्मल कुमारजी सेठी ततः श्री पी. यु. जैन इत्यादि मान्यवरों की उपस्तिथि थी | इसके कुछ समय पश्चात याने १९९२ में आचार्य श्री की समाधी हो गयी | इस वजैहसे यह प्रकल्प मूर्तरूप नहीं ले सका |
इसके बाद १९९६ में प. पु. गणिनी आर्यिका श्रेयांसमती माताजी के आग्रह से प. पु. १०५ गणिनी आर्यिका रत्न ज्ञानमती माताजी को मांगीतुंगी आमंत्रित किया गया और उन्ही के मंगल आशीर्वाद से मांगीतुंगी में बनाये गए १००८ मुनि सुवरतनाथजी के नए मंदिर का पंचकल्याणक तथा प्राण प्रतिष्ठान महत्सव संपन्न हुवा | इस समारम्भ में लाखों की संख्या में सभी जैन एंवम शासन के सभी पदाधिकारी तथा मुख्यमंत्री श्री मनोहर जोशीजी तथा चांदवड के आमदार श्री जयचन्दजी कासलीवाल सहित अनेक मंत्रीगण उपस्तिथ थे |
इस पंचकल्याणक के दरमियान आचार्य श्रेयांसागरजी महाराजजी ने १२० फ़ीट मूर्ति निर्माण करने की जो संकल्पना की थी उसे विषय में काफी चर्चा के बाद ये तय हुवा के १०८ फ़ीट ऊँची भगवन वृषभदेव की प्रतिमा का निर्माण कार्य किया जायेगा | इस संकल्प को मूर्त रूप देने का निश्चय प. पु. १०५ गणिनी आर्यिका रत्न ज्ञानमती माताजी ने किया | उस समय प. पु. गणिनी आर्यिका श्रेयांसमती माताजी, मांगीतुंगी संस्थाके तत्कालीन ट्रस्टी श्री हुकुमचन्दजी गंगवाल (धूलिया), महामंत्री श्री गणेशलालजी जैन (मांगीतुंगी), डॉ. देवेन्द्र धर्मदास लाड (मालेगांव), श्री माणिकचंदजी पहाड़े (मालेगांव), श्री अनिलभाई जैन (परोडा), श्री हुकुमचन्दजी पाहड़े (मालेगांव), श्री पन्नालालजी पापड़ीवाल (औरंगाबाद), श्री अरुणभाई जैन (कुसुंबा), श्री जे. के. जैन (मुंबई), श्री रतनचंदजी शहा (धूलिया), श्री शरद संघवी (चोपड़ा), श्री प्रमोदभाई अजमेर, श्री मोहन गांधी (धरणगांव), श्री सुनील ठोलिया (धूलिया) तथा दिगंबर जैन समाजके अन्य मान्यवर उपस्तिथ थे | और इस प्रकार १०८ फ़ीट ऊँची विश्व की सबसे बड़ी, दिगंबर जैन पंथ के प्रथम तीर्थंकर भगवन वृषभदेव की प्रतिमा निर्माण करने का अद्भुत कार्य शुरू हुवा | लगातार १९९६ से २०१६ तक यह कार्य दिन रात किया गया ना दिन देखा ना रात देखी | दिगंबर जैन समाजका हर व्यक्ति इस मूर्ति को साकार होते हुवे देखना चाहत था | इस महान ऐतिहासिक कार्य को पूरा करने के लिए प्रेरणा थी प. पु. १०५ गणिनी आर्यिका रत्न ज्ञानमती माताजी | और संयोजन था स्वामी रविन्द्र कीर्तिजी इनका | आशीर्वाद थे प. पु. चन्दनमती माताजी के | सहयोग किया मांगीतुंगी के ट्रस्ट मंडल ने | लगातार २० साल तक रात दिन काम करने के बाद मांगीतुंगी के पहाड़ पर समुद्र ताल से ४००० फ़ीट की ऊंचाई पर आज हम इस महान संकल्प को पूरा होते हुवे देखते हैं | और खुद को इस ऐतिहासिक घटना का साक्षी मानते हैं |
मांगीतुंगी ट्रस्ट तथा संपूर्ण कार्यकारीणी मंडल इस पूरी घटना का साक्षीदार रहते हुवे संपूर्ण जैन समाजके सदैव स्वागतउत्सुक रहेंगे |
मांगीतुंगी के ट्रस्ट मंडल तथा कार्यकरिणी सदस्युं के नाम :
1 |
श्री सुमेरकुमार पन्नालाल काले |
नाशिक |
अध्यक्ष |
2 |
श्री प्रमोद दुलीचंद जैन (अजमेरा) |
धुलिया |
उपाध्यक्ष |
3 |
श्री उपेंद्र देवेंद्र लाड |
मालेगांव |
सचिव |
4 |
श्री अशोक / राजेंद्र धन्नालाल बड़जाते |
सटाणा |
उपसचिव |
5 |
श्री मोहनभाई सोनलाल जैन |
कुसुंबा |
कोषाध्यक्ष |
6 |
न्यायमूर्ती कैलाशचंद उत्तमचंद चांदीवाल |
मुंबई |
सदस्य |
7 |
श्री रमेश हुकूमचंद गंगवाल |
इंदोर |
सदस्य |
8 |
श्री सतीश गमनलाल जैन |
सोनागिरी |
सदस्य |
9 |
श्री अनिल श्रीचंद जैन |
परोड़ा |
सदस्य |
10 |
अडव्होकेट महेंद्र बसंतीलाल जैन |
धुलिया |
सदस्य |
11 |
श्री किशोर रतनचंद शाह |
धुलिया |
सदस्य |
12 |
श्री प्रवीण हुकुमचंद पहाड़े |
मालेगांव |
सदस्य |
13 |
श्री सुरजमल गणेशलाल जैन |
मांगीतुंगी |
सदस्य |
14 |
श्री प्रदिप धरमचंद ठोले |
सटाणा |
सदस्य |
15 |
श्री वर्धमान निहालचंद पहाडे |
चांदवड |
सदस्य |